37 वर्षीय युवराज सिंह ने आज 10 जून 2019 को साउथ मुंबई होटल में अपने 17 साल के क्रिकेट करियर को अलविदा करने का ऐलान किया। साल 2007 में टी-20 और साल 2011 में विश्व कप में युवराज का टीम को जीताने में बहुत योगदान रहा। युवराज सिंह का क्रिकेट का सफर काफी अच्छा रहा। युवराज ने अपने 17 साल के क्रिकेट करियर में 402 मैच खेले, जिसमें उन्होंने 11,778 रन बनाए, इसके साथ उनके नाम 17 शतक और 71 अर्धशतक शामिल है। युवराज अपने इस 17 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा करने के बाद आगे बढ़ने का फैसला किया है।
युवराज ने प्रेस कांफ्रेस में कहा कि, क्रिकेट ने मुझे बहुत कुछ दिया है और यही कारण है कि मैं आज यहां खड़ा हूं। मैने हमेशा इस खेल से सिर्फ प्यार किया और यह मेरे जीवन के अंत तक मुझ में रहेगा। क्रिकेट मेरे लिए क्या है मैं इसे कभी शब्दों में बता नहीं सकता, इस खेल ने मुझे हमेशा मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ना सिखाया है।
युवराज ने बताया कि वो हमेशा बचपन से भारतीय टीम के लिए खेलना चाहते थे और देश के लिए विश्व कप जीतकर अपने पापा का सपना पूरा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने पूरी कोशिश की और उसको पूरा भी किया। युवराज सिंह ने कहा कि मैं हमेशा अपने गुरुजी स्वर्गीय संत बाबा अजीत सिंह जी, संत बाबा राम सिंह जी और अपने माता-पिता का हमेशा आबारी रहूंगा, क्योंकि इन लोगों ने मुझे हमेशा सही मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया।
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युवराज ने कहा कि क्रिकेट ने मुझे काफी कुछ सिखाया है। मैंने किसी भी चुनौती के आगे कभी हार नहीं मानी फिर चाहे वो क्रिकेट का मैच हो या फिर कैंसर से लड़ाई। हर चुनौती से बहुत आराम से निपटता हूं। 2011 के विश्व कप को जीतकर, मैन ऑफ़ द सीरीज़ होना, चार मैन ऑफ़ द मैच पुरस्कार सभी एक सपने की तरह थे, जिसके बाद एक कठोर समय जीवन में आया वो था – कैंसर का निदान। यह आकाश को छूने और फिर हल्की गति से नीचे गिरने और जमीन पर कड़ी चोट लगने जैसा था। क्योंकि यह सब इतनी जल्दी हुआ और वह भी तब जब मैं अपने करियर के चरम पर था।
उस मुश्किल भरे पल में हर कोई मेरे साथ था, मेरे प्रशंसक, मेरे दोस्त और परिवार। मैं उसके लिए बीसीसीआई और बीसीसीआई अध्यक्ष को भी धन्यवाद देना चाहूंगा कि मेरे उपचार में उनका समर्थन मेरे साथ रहा। श्री एन श्रीनिवासन, मेरे दोनों डॉक्टर्स को धन्यवाद – डॉ. रोहतगी जो मुझे अमेरिका में डॉ-लॉरेंस एच आइन्हॉर्न के इलाज के लिए ले गए, जिन्होंने लांस आर्मस्टॉन्ग का इलाज भी किया था।
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मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि मैने भारत के लिए 400 से ज्यादा गेम खेले हैं, इसके लिए मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं, जब मैंने एक क्रिकेटर के रूप में अपना करियर शुरू किया, तो ऐसा करने की कल्पना नहीं की थी। मेरी इस यात्रा में कुछ पल मुझे हमेशा याद रहेंगे, जैसे 2002 नेटवेस्ट फाइनल, 2004 में लाहौर में मेरा पहला टेस्ट शतक, 2007 में इंग्लैंड में टेस्ट श्रृंखला, निश्चित रूप से 2007 टी 20 विश्व कप में छह छक्के और फिर सबसे यादगार था, 2011 विश्व कप फाइनल।
वहीं मेरे क्रिकेट करियर में मेरा सबसे खराब दिन श्रीलंका के खिलाफ 2014 टी 20 विश्व कप फाइनल था जब मैंने 21 गेंदों में 11 रन बनाए। उस समय मुझे लगा कि मेरा करियर खत्म हो गया है। उसके बाद मैने अपने आप को समय दिया और सोचा कि मैं क्रिकेट क्यों खेलता हूं क्योंकि मुझे यह खेल पसंद है।
उसके बाद मैंने घरेलू क्रिकेट में वापसी की और लगभग डेढ़ साल बाद मैंने फिर से भारत के लिए टी 20 में वापसी की, जहां मैंने सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी ओवर में छक्के और चौके मारे और अचानक सभी को विश्वास हो गया कि मैं अभी भी खेल सकता हूं। मैंने कभी भी अपने आप पर विश्वास करना बंद नहीं किया, चाहे दुनिया ने कुछ भी कहा हो। अपने आप पर विश्वास करें क्योंकि यदि आप अपना दिल और आत्मा इसमें लगाते हैं तो आप असंभव को प्राप्त कर सकते हैं।
क्रिकेट ने मुझे कुछ बेहतरीन दोस्त और सीनियर्स दिए हैं। मैंने सौरव गांगुली की कप्तानी में अपना करियर शुरू किया और मुझे महान सचिन तेंदुलकर और अनिल कुंबले, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़ और जवागल श्रीनाथ जैसे अन्य दिग्गजों के साथ खेलने का मौका मिला। मैं चयनकर्ताओं और सौरव गांगुली को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे चुना और 2007 में भारत के लिए खेलने का मौका दिया।
प्रेस क्रांफेस के वक्त युवराज के सामने उनकी मां बैठी थी, संन्यास के वक्त युवराज ने कहा कि मैरी मां मेरी हमेशा ताकत रही है। युवराज ने बताया कि बचपन से क्रिकेट खेलने का सपना मेरे पापा ने देखा था उसको पूरा करने कि कोशिश मैने हमेशा की।