इंग्लैंड को क्रिकेट का जनक कहा जाता है। पर ये भी हैरतअंगेज़ बात है कि क्रिकेट की शुरुआत करने वाला देश कभी विश्व विजेता नहीं बन पाया। कितनी बार यह टीम विश्व कप ट्रॉफी के दरवाजे दस्तक देकर लौट गयी ये भी गौर करने वाली बात है। क्रिकेट का रचयिता ये देश तीन बार विश्व कप फ़ाइनल पहुंचा पर आख़िरी दांव चार खाने चित्त हुआ।
चौथी बार, यानि कि २०१९ में इंग्लैंड एक बार फिर से फ़ाइनल में हैं, और इस बार अगर वो जीते तो क्रिकेट विश्व कप पहली बार अपने घर जायेगा। इस बार की दूसरी फ़ाइनलिस्ट न्यूज़ीलैण्ड दूसरी बार फ़ाइनल में पहुंची है। वो इससे पहले २०१५ क्रिकेट विश्व कप में उपजेता रही थी। मतलब इस ओशिनिया देश का ये लगातार दूसरा फ़ाइनल होगा।
इंग्लैंड के अलावा वेस्टइंडीज़ ३ बार विश्व कप फ़ाइनल में पहुंची जिसमें दो बार वो विश्व विजेता बनी, भारत भी ३ विश्व कप फ़ाइनल में दो बार वो विश्व विजेता बनी। इनके अलावा श्रीलंका ३ बार विश्व कप फ़ाइनल में पहुंची जिसमें एक बार ही वो विश्व विजेता बनी और पाकिस्तान २ बार विश्व कप फ़ाइनल में पहुंची जिसमें एक बार ही वो विश्व विजेता बनी।
ऑस्ट्रेलिया सबसे ज़्यादा ७ बार विश्व कप फ़ाइनल में पहुंची, जिसमें पांच बार वो विश्व विजेता बनी।
इंग्लैंड कब कब मौका चूकी ?
१९७९ विश्व कप फ़ाइनल:
शनिवार २३ जून १९७९, एकदिवसीय संख्या ७४, लॉर्ड्स का मैदान और वेस्टइंडीज़- इंग्लैंड की ख़िताबी जंग। १९७९ विश्व कप, विश्व कप प्रतियोगिता का दूसरा संस्करण था । पहले संस्करण की विजेता वेस्टइंडीज़ टीम लगातार दूसरी बार फ़ाइनल पहुँची थी।
इस मुक़ाबले के गवाह ३२००० दर्शक बने थे और उनमें से ज़्यादातर अंग्रेज दर्शक थे। पर वेस्टइंडीज की टीम तो मानो अंग्रेजों को उनके ही गढ़ में मटियामेट करने आयी थी। हुआ भी कुछ ऐसा जो अंग्रेजी टीम के समर्थकों ने सोचा भी नहीं होगा। इंग्लैंड हारी और बुरी तरह हारी।
पहले खेलते हुए सेनापति क्लाइव लॉयड की टीम ने सदी के महानायक सर विवियन रिचर्ड्स के शतक (१३८ रन)और कॉलिन किंग के तूफ़ानी अर्धशतक (८६) की बदौलत ६० ओवरों में नौ विकेट पर २८६ रन बनाए। रिचर्ड्स के १३८ रनों में ११ चौके और ३ छक्के थे। वहीँ किंग के अर्धशतक में १० चौके और ३ छक्के थे। इनके अलावा कोई और बल्लेबाज़ कुछ भी नहीं कर पाया।
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बॉथम, हेंड्रिक, ओल्ड और एड्मोंड ने अंग्रेज़ टीम के लिए २-२ विकेट लिए।
२८७ रनों का लक्ष्य भेदने उतरी ब्रेयरली की अँगरेज़ टीम जोएल गार्नर, क्रॉफ्ट और होल्डिंग के सामने टिक नहीं पायी और ५१ ओवरों में १९४ पर ढेर हो गयी। गार्नर ने अंग्रेजों को मानो लपेट डाला होने तरकश में- उन्होंने इस मुक़ाबले में सबसे ज्यादा ५ विकेट उड़ाए।
इंग्लिश टीम के लिए सबसे ज्यादा रन उनके सलामी बल्लेबाज़ों कप्तान ब्रेयरली और पिछले कुछ समय से कमेंट्री की लोकप्रिय आवाज़ जेफ़्री बॉयकॉट ने बनाये। इनके और ३२ रन बनाने वाले ग्राहम गूच के अलावा सारे लोग आया राम गया राम साबित हुए।
शतक लगाने वाले रिचर्ड्स को मैच का नायक का ख़िताब मिला। इस मुक़ाबले में महान अंपायर डिकी बर्ड और बैरी मेयर ने अंपायरिंग की थी।
१९८७ रिलायंस विश्व कप फ़ाइनल:
रविवार ८ नवम्बर १९८७, एकदिवसीय संख्या ४७७, भारत का लॉर्ड्स- ईडन गार्डन्स का मैदान और ख़िताबी मुक़ाबला ऑस्ट्रेलिया- इंग्लैंड का। ये पहला मौका था जब विश्व कप इंग्लैंड से बाहर आया था। दूसरी रोचक बात ये थी कि इस ख़िताबी मुक़ाबले में खेलने वाली दोनों टीमें अपना दूसरा विश्व कप फ़ाइनल खेल रही थी। जहां ऑस्ट्रेलिया १९७५ के पहले विश्व कप में उपजेता रही थी, इंग्लैंड १९७९ विश्व कप में उपजेता रही थी। यानि कि दो पूर्व उपजेता टीमों में विजेता बनने की जंग।
ख़िताब जीतने का सपना लेकर आयी दोनों टीमों में पहले खेलते हुए एलन बॉर्डर की ऑस्ट्रेलियाइ टीम ने सलामी बल्लेबाज़ डेविड बून के अर्धशतक और बाकी बल्लेबाज़ों के थोड़े थोड़े रनों से ५ विकेटों पर २५३ रनों का स्कोर खड़ा किया।
इंग्लैंड के लिए हेमिंग्स, फोस्टर और गूच ने २, १ और १ विकेट चटकाए।
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जवाब में इंग्लैंड की टीम ख़िताब के बेहद क़रीब पहुंचकर भी बेहद दूर रह गयी अपने पहले विश्व कप से। बॉर्डर की टीम ने इंग्लैंड को जीत और हार के बीच का बॉर्डर क्रॉस नहीं करने दिया। बेहद रोमांचक इस मुक़ाबले में, इंग्लैंड की ओर से अठे ने ५८, कप्तान माइक गैटिंग ने ४१, और लैम्ब ने ४५ रनों की पारी खेली और एक समय लग रहा था कि भारत के सबसे लोकप्रिय मैदान में इंग्लैंड ही जीतेगा।
पर कहा जाता है कि वीर भोगे वसुंधरा- ऑस्ट्रेलिया ने अपने महानायक बॉर्डर और आने वाले समय के सफलतम कप्तान स्टीव वॉ ने २-२ विकेट चटकाए, जबकि ओ’डोनल और मैकडरमॉट ने १-१ विकेट लिए। इंग्लैंड की टीम ५० ओवरों में ८ विकेट पर २४६ ही बना पायी। आख़िरी क़दम पर ठिठक कर रह गयी अंग्रेज़ टीम, वरना ये जीत की गारंटी जैसा मुक़ाबला हो चुका था उनके लिए।
डेविड बून इस मैच के महानायक बने।
१९९२ विश्व कप फ़ाइनल
बुधवार मार्च २५, १९९२, एकदिवसीय संख्या ७५२, ऑस्ट्रेलिया का मेलबॉर्न का मैदान और ख़िताबी मुक़ाबला पाकिस्तान- इंग्लैंड का। विश्व कप पहली बार ऑस्ट्रेलिया में हो रहा था और फ़ाइनल दो मेहमान टीमों में था। पाकिस्तान पहली ख़िताबी जंग में था जबकि अँगरेज़ टीम की ये तीसरी कोशिश थी ख़िताब सरमाथे करने की। पर पाकिस्तान पहली बार विश्व विजेता बना और इंग्लैंड की ये कोशिश ही नाकाम रही।
सेनापति इमरान खान की पाकिस्तान टीम ने पहले खेलते हुए इमरान के ७२, जावेद मियांदाद के ५८, इंजमाम- उल हक़ के ४२ और हरफ़नमौला वसीम अकरम के ३३ रनों के योगदान से ६ विकेट पर २४९ रन बनाया। इंग्लैंड के लिए प्रिंगल ने सबसे ज्यादा ३ शिकार बनाये जबकि बॉथम और इलिंगवर्थ ने १-१ विकेट लिया।
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जवाब में २५० का लक्ष्य भेदने उतरी ग्राहम गूच की अँगरेज़ टीम नील फेयरब्रदर के ६२, गूच के २९ और लैम्ब के ३१ रनों की बदौलत २२७ रन ही बना पायी।
मैच के महानायक बने अकरम जिन्होंने गेंदबाज़ी में भी बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए अँगरेज़ टीम के तीन बन्दे लपेट डाले। उनके अलावा मुश्ताक़ अहमद ने ३ और आक़िब जावेद ने २ विकेट चटकाए। इस विश्व कप में इमरान की कप्तानी के लिए उन्हें दुनिया के बेहतरीन कप्तानों में शुमार किया जाता है। पाकिस्तान के सफलतम कप्तान तो वो हैं ही।