कहा जाता था कि कुछ खेल नहीं सकते तो पढ़ने में ही मन लगा लो जिंदगी में कुछ तो बन ही जाओगे। जब करियर बनाने का समय आया तो समझ आया कि जो लोग स्टेट, नेशनल खेला करते थे वो एग्जाम के समय खेल छोड़कर पढ़ाई में लग जाते थे। लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। ऐसा ही कुछ किया अपनी खूबसूरत अदाओं और अपने बैडमिंटन गरज से सबके दिलों पर राज करने वाली इस हरयाणवी छोरी ने, जो बैडमिंटन कोर्ट पर अपने बैडमिंटन रैकेट के जलवों से सबका दिल जीत लेती है। कम उम्र में बैडमिंटन की दुनिया में कामयाबी हासिल करने वाली Steffi साइना ने ये साबित कर दिया था के वो इस खेल में किसी पर भी बरसात की बूँदें की तरह बरस सकती हैं।
साल था 2006 फिलीपींस :

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16 साल की उम्र में बैडमिंटन की दुनिया में तहलका मचाकर ये स्टर्ल चार- सितारा बैडमिंटन जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी। उस समय 86वीं रैंक के साथ साइना ने वर्ल्ड नंबर 4 की खिलाड़ी को हराया था। और ये जीत उनके लिए किसी आसमान से तोड़कर लेकर आए सितारे से कम नहीं थी।
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विश्व जूनियर चैंपियनशिप (2008):

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2008 की सबसे होनहार खिलाड़ी के रूप में जानी जाने वाले नेहवाल 2008 में विश्व जूनियर चैंपियनशिप जीतकर पूरी दूनिया में तहलका मचाया और साथ ही विश्व जूनियर बैडमिंटन चैम्पियनशिप का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गईं।
इंडोनेशिया ओपन (2009) :

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19 साल की उम्र और तारीक थी 21 जून 2009 कोर्ट पर खेला जा रहा था इंडोनेशिया ओपन एक तरफ भारत में तहलका मचाने वाली नेहवाल थी और दूसरी ओर वर्ल्ड नंबर 3 वांग लिन। अपना पहला सेट 12-21 से हार चुकी साइना, इतनी जल्दी कैसे हार मान सकती थी वो तो गरज कर बरसने वालों में से थी। इंडोनेशिया ओपन जीतने के लिए साइना को पास बाकी 2 सेट थे, फिर इस स्टर्ल ने बैडमिंटन रैकेट से गरज इस तरह निकालनी शुरू की के देखते ही देखते 21-18, 21-9 से BWF सुपर सीरीज खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बन गई।
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इंडोनेशिया ओपन (2010):

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साइना की लगातार ये दूसरी सुपरसीरीज थी, जिसके लिए इस चैंपियन ने जी तोड़ मेहनत की थी। कहा जाता है मेहनत का फल जरूर मिलता है। ठिक साइना की मेहनत का रंग भी रंग लाया।
गड़गड़ाती बिजली की तरह साइना नेहवाल ने जापान की शटलर सयाका सातो को 21-19, 13-21, 21-11 से हराकर इंडोनेशियन सुपरसीरीज खिताब अपने नाम किया। यह उनके करियर का तीसरा सुपरसीरीज खिताब था।