देखने वालो को लगता है खेल खेलना कितना आसान है पर इसके पीछे के संघर्ष को एक खिलाड़ी ही जान सकता है। ऐसे ही भारतीय मुक्केबाज है जो विश्व मंच पर संघर्ष करने के लिए एक ताकत हैं क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से कुछ के खिलाफ जीतना जारी रखते हैं। 2012 में महिलाओं की मुक्केबाजी ने अपने मुक्के की ताकत को दुनिया के सामने दिखाना शुरु किया, जिसके बाद राष्ट्र ने बड़ी संख्या में महिलाओं को इस खेल में शामिल किया।
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5. डिंग्को सिंह
हर कोई अपने आप में खास होता और अगर वो कुछ ऐसा कर जाए जिससे पूरे देश को गर्व हो तो बात ही कुछ और होती है ऐसे ही 1997 में बैंकाक में किंग्स कप जीतने के बाद डिंग्को सिंह सुर्खियों में आए। जिसके बाद वह सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज घोषित किए गए। डिंग्को को शुरू में 1998 के बैंकाक एशियाई खेलों के मुक्केबाजी दल से हटा दिया गया था, लेकिन बाद में शामिल कर लिया गया। उन्होंने सेमीफाइनल में वर्ल्ड नंबर 3 थाईलैंड के मुक्केबाज वोंग प्रेज सोंटाया को हराया।
पुरस्कार: अर्जुन पुरस्कार – 1998 पद्म श्री – 2013
4. सरिता देवी
एक गरीब परिवार से होने के बावजूद लेशराम सरिता देवी ने कभी अपने खेल के आगे अपनी गरीबी को नहीं आने दिया। सरिता ने साल 2000 में मुहम्मद अली की उपलब्धियों से प्रेरित होकर पेशेवर मुक्केबाजी की।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में उनका पदक इस प्रकार है:
एशियाई चैंपियनशिप:
सिल्वर – 2001, बैंकॉक गोल्ड – 2003, हिसार गोल्ड – 2005, काऊशुंग सिटी गोल्ड – 2008, गुवाहाटी स्वर्ण – 2010, अस्ताना राष्ट्रमंडल खेल – रजत – 2014, एशियाई खेल – कांस्य – 2014, इंचियोन विश्व चैंपियनशिप कांस्य – 2005, पोडॉल्स्क गोल्ड – 2006, नई दिल्ली कांस्य – 2008,
पुरस्कार: अर्जुन पुरस्कार – 2009
3. हवा सिंह
60 और 70 के दशक में हवा सिंह ने भारत और एशियाई मुक्केबाजी में एक आलग पहचान बनाई। उन्होंने लगातार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते – 1966 बैंकाक और 1970 बैंकाक खेलों को हैवीवेट वर्ग में। किसी भी भारतीय मुक्केबाज ने अब तक इस उपलब्धि की बराबरी नहीं की है।
पुरस्कार: अर्जुन पुरस्कार – 1966 द्रोणाचार्य पुरस्कार – 1999
2. विजेंद्र सिंह
पिता के संघर्ष को देख बेटे ने उनको अच्छी जिंदगी देने का फैसला किया। विजेंद्र अपने भाई मनोज से मुक्केबाजी के लिए प्रेरित थे। विजेंद्र ने कोच जगदीश सिंह के मार्गदर्शन में भिवानी मुक्केबाजी क्लब में प्रशिक्षण लिया। जिसके बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके पदकों की लाइन लगी।
कांस्य – 2006 दोहा एशियाई खेल, सिल्वर – 2006 मेलबर्न कॉमनवेल्थ गेम्स, कांस्य – 2008 बीजिंग ओलंपिक, कांस्य – 2009 विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियनशिप मिलान, कांस्य – 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल, गोल्ड – 2010 गुआंगज़ौ एशियाई खेल, सिल्वर – 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स
पुरस्कार: राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
1. मैरी कॉम
मुक्केबाजी का नाम आए और इस खिलाड़ी की बात न की जाए तो ये खेल आधूरा रह जाएगा। मैरी कॉम दुनिया में सबसे अधिक सजाए गए मुक्केबाजों में से एक है। डिंग्को सिंह की सफलता ने उन्हें मुक्केबाजी के लिए प्रेरित किया। वह भारत और दुनिया की कई महिला मुक्केबाजों की प्रेरणा रही हैं। मैरी इम्फाल में एक महिला-केवल फाइट क्लब चलाती है, जिसमें लड़कियों को यौन हिंसा से बचाव करना सिखाया जाता है।
उपलब्धियां: एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप: गोल्ड – 2003, हिसार गोल्ड – 2005, काऊशुंग सिल्वर – 2008, गुवाहाटी स्वर्ण – २०१०, अस्ताना गोल्ड – 2012, उलानबटार महिलाओं की विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियनशिप: सिल्वर – 2001, स्क्रैंटन गोल्ड – 2002, अंताल्या गोल्ड – 2005, पोडॉल्स्क गोल्ड – 2006, नई दिल्ली गोल्ड – 2008, निंग्पो सिटी गोल्ड – 2010, ब्रिजेट एशियाई खेल: कांस्य – 2010, गुआंगज़ौ गोल्ड – 2014, इंचियोन ओलिंपिक खेलों: कांस्य – 2012 लंदन
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