आज सुबह जब सूर्य अभी उग ही रहा था तभी भारतीय हॉकी के सबसे बड़े सितारों में से एक अस्त हो गया। बलबीर सिंह दोसांझ, जो मई 8 से हॉस्पिटल में भर्ती थे ब्रोन्कायल निमोनिया की वजह से और मई 18 से कोमा जैसे हालत में थे, आज सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर परमात्मा में लीन हो गए। दोसांझ 96 साल के थे और उनके परिवार में उनकी बेटी सुशबीर और 3 बेटे कंवलबीर, करणबीर और गुरबीर हैं। इस समाचार ने पूरे भारत और खेल जगत को ग़मगीन कर दिया।
आज हम भारत के इस महान हॉकी खिलाड़ी के जीवन से जुड़े कुछ बेहद रोचक पहलु बताएँगे, कुछ ऐसे पहलु भी जो शायद उन्हें फ़ील्ड हॉकी का महानतम खिलाड़ी बनाते हैं:
जन्म हुआ था 1923 में
बलबीर सिंह दिसंबर 31, 1923 को जन्में थे पंजाब के जालंधर के हरिपुर खालसा गांव में। पिता दलीप सिंह दोसांझ स्वतंत्रता सेनानी थे।
बलबीर सिंह सीनियर भी कहे जाते हैं
भारतीय हॉकी में बलबीर सिंह नाम के काफ़ी खिलाड़ी रहे हैं, कुछ तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गए और कुछ ने तो ओलिंपिक भी खेला और मेडल भी जीता। 1968 के ओलिंपिक खेलों में भारतीय टीम में 3 बलबीर सिंह थे। तो नाम के भ्रम को दूर करने के लिए बलबीर सिंह दोसांझ को बलबीर सिंह सीनियर कहने लगे खेल जगत के लोग।
आज़ाद भारत का पहला ओलिंपिक गोल्ड और चौथा लगातार
अब रुख करते हैं उस ओर जहाँ बलबीर सिंह की महानता ही महानता है। 1948 के लंदन ओलिंपिक खेलों में आज़ाद भारत पहली बार खेल रहा था और काफ़ी मशक्कत के बाद टीम बनायी थी भारत ने, भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद। पर कहते हैं न “जब परिस्थितियां प्रतिकूल हों, तो सबसे मजबूत इतिहास लिखे जाते हैं”, और यही हुआ लंदन में। भारत ने अपना चौथा ओलिंपिक गोल्ड जीता, लगातार (इससे पहले के दो ओलिंपिक खेल द्वितीय विश्व युद्ध के भेंट चढ़ गए थे)। ये आज़ाद भारत का पहला ओलिंपिक गोल्ड था।
जीत के नायक थे बलबीर सिंह दोसांझ जिन्होंने इस ओलंपिक्स में सबसे ज़्यादा 8 गोल किये थे। ये 8 गोल और भी सुखद अनुभव देंगे जब आपको पता चलेगा कि बलबीर सिंह ने केवल दो मैच खेले थे पांच में से। और फिर महानता की ओर जाते दिखेंगे जब आपको पता चलेगा कि उन्होंने फ़ाइनल में सबसे ज्यादा 2 गोल किये थे भारत के लिए चार में से।
यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भारत ने फ़ाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को हराया था और वो भी भारत की आज़ादी के 1 साल के अंदर ही। 12 अगस्त था दिन फ़ाइनल का।
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बॉलीवुड फिल्म “गोल्ड” 1948 की जीत पर आधारित
2018 में आयी हिंदी फिल्म गोल्ड जिसमें अक्षय कुमार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह फ़िल्म आज़ाद भारत के पहले ओलिंपिक गोल्ड पर आधारित है और फ़िल्म में सनी कौशल ने जिन हिम्मत सिंह का किरदार निभाया है वो बलबीर सिंह दोसांझ के व्यक्तित्व पर आधारित है। इस फ़िल्म को भारतीय खेल प्रेमियों ने काफ़ी सराहा।
आज़ाद भारत का दूसरा गोल्ड और पांचवा लगातार
लंदन खेलों में तिरंगे और राष्ट्रगान का गौरव बढ़ने के चार साल बाद भारत फिरसे ओलिंपिक खेलों में था, इस बार हेलसिंकी में। बलबीर सिंह दोसांझ एक बार फिर टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने थे। भारत ने टूर्नामेंट में 3 मैच खेले थे जिनमें भारत की तरफ से 13 गोल हुए थे। बलबीर सिंह ने इनमे से 9 गोल किये थे।
और तो और उन्होंने टूर्नामेंट के फ़ाइनल में एक बार फिर सबसे ज़्यादा गोल किये जब उन्होंने नीदरलैंड के ख़िलाफ़ 6 में से 5 गोल किये। ये आज़ाद भारत का दूसरा ओलिंपिक गोल्ड मेडल था और लगातार पांचवा अगर आज़ादी के पहले के जीतों को जोड़ दिया जाए तो। इसके अलावा उन्होंने टूर्नामेंट में एक और हैट्रिक भी बनायी थी ग्रेट ब्रिटेन के ख़िलाफ़ सेमीफाइनल में।
गिनीज़ विश्व रिकॉर्ड सूची में नाम
हेलसिंकी के ओलिंपिक खेलों के फ़ाइनल में उनके 5 गोल किसी भी पुरुष ओलिंपिक फ़ील्ड हॉकी फ़ाइनल का सबसे ज्यादा गोल है। यह रिकॉर्ड गिनीज़ विश्व रिकॉर्ड सूची में दर्ज़ है और अब तक नहीं टूटा इतने दशक बीतने के बाद भी।
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नेतृत्व भारतीय ओलिंपिक दल का
बलबीर सिंह दोसांझ फ्लैग बेयरर (ध्वजधारक) थे भारतीय ओलिंपिक दल के, वो भी दो ओलिंपिक में। ऐसा हुआ था 1952 के हेलसिंकी और 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में। ओलिंपिक खेलों में ध्वजधारक सबसे प्रतिष्ठित आदर माना जाता है। बलबीर सिंह को 1952 में यह आदर 1948 के लंदन खेलों में उनके सबसे ज़्यादा गोल की वजह से मिला शायद और 1952 में उन्होंने फिरसे सबसे ज़्यादा गोल किये। और ऐसे उन्होंने दो ओलिंपिक खेलों में तिरंगे के साथ भारतीय ओलिंपिक दल का नेतृत्व किया।
आज़ाद भारत का तीसरा ओलिंपिक गोल्ड और छठा लगातार
1956 के मेलबर्न ओलिंपिक खेलों में भारत बलबीर सिंह के कप्तानी में खेला था। यहाँ भारत ने अपना छठा और आज़ादी के बाद अपना तीसरा गोल्ड जीता। इस टूर्नामेंट में बलबीर सिंह पहले मैच में चोटिल हुए और अगले दो मैच नहीं खेल पाए। सेमीफाइनल और फ़ाइनल में वापस खेले पर अपने हॉकी स्टिक से स्कोरबोर्ड पर नाम दर्ज़ नहीं कर पाए।
हालाँकि उन्होंने पहले मैच में 5 गोल किये थे सबसे ज्यादा। उधम सिंह कुलर ने टूर्नामेंट में भारत के तरफ़ से सबसे ज़्यादा गोल किये और भारतीय हॉकी के इस महानायक को उनके आख़िरी ओलिंपिक खेलों में स्वर्णिम विदाई दी।
22 गोल ओलिंपिक खेलों में
बलबीर सिंह दोसांझ ने अपने ओलिंपिक खेलों के 8 मैचों में 22 गोल किये, यानी कि हर मैच में 2 से ज्यादा गोल। ध्यानचंद ने 16 मैचों में 39 गोल किये हैं।
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खेलों के पहले पद्म पुरस्कार विजेता
1957 में बलबीर सिंह दोसांझ खेलों से पहले पद्म पुरस्कार विजेता बन गए जब उन्हें देश के चौथे सबसे उत्कृष्ट नागरिक सम्मान, पद्म श्री से सम्मानित किया गया भारतीय हॉकी में उनके प्रदर्शन के लिए।
मुख्य कोच- मैनेजर थे 1975 विश्व कप में
1975 हॉकी विश्व कप एकमात्र विश्व कप है जो भारत ने जीता है आजतक। बलबीर सिंह दोसांझ इस विश्व विजेता टीम के कोच और मैनेजर थे। इसके पहले वो 1971 के विश्व कप में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के कोच भी थे।
द गोल्डन हैट्रिक उनकी आत्मकथा
1977 में बलबीर सिंह दोसांझ ने विकास पब्लिशर्स और सैमुएल बनर्जी की मदद से अपनी आत्मकथा लिखी। यह किताब उनके व्यक्तिगत जीवन के कुछ पहलु को छूती है पर भारत के ओलिंपिक और 1975 विश्व कप पर केंद्रित है।
1982 के एशियन खेलों के टॉर्च जलाने का सम्मान
1982 के दिल्ली में हुए एशियाई गेम्स के टॉर्च को जलाने का सम्मान उन्होंने पाया था। वो तब भारतीय हॉकी टीम के कोच भी थे जिसने सिल्वर जीता था एशियाई खेलों का।
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2012 में ओलिंपिक जर्नी- द स्टोरी ऑफ़ द गेम्स में
2012 के लंदन ओलिंपिक खेलों के प्रमोशन के लिए बने सीरीज़ में शामिल 16 महान ओलिंपिक हस्तियों में शामिल एकमात्र भारतीय थे बलबीर सिंह दोसांझ। अन्य खिलाड़ियों में स्टीव रेडग्रेव, ओल्गा कॉर्बट, केली होम्स, जेस ओवन्स एलाना मेयर और एलेक्सांद्र करेलिन हैं। यह फीचर स्विट्ज़रलैंड में ओलिंपिक म्यूज़ियम में दिखाया गया था खेल प्रेमियों को।
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2015 में हॉकी इंडिया ने उन्हें मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया बलबीर सिंह दोसांझ को भारतीय हॉकी में उनके योगदान के लिए ।
तो क्या लगता है? क्या बलबीर सिंह दोसांझ फ़ील्ड हॉकी के महानतम खिलाड़ी हैं? ये आंकलन मैं आप पर छोड़ता हूँ।
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— SportsCrunch (@SportsCrunch) May 18, 2020