क्रिकेट में जून 25 का इतिहास भारत के विश्व क्रिकेट में एक मुक़ाम हासिल करने का इतिहास है। हाँ ये वो दिन था, जब भारत ने 2 बार की विश्व विजेता वेस्टइंडीज़ को हरा कर विश्व विजेता का ख़िताब अर्जित किया था। यह दिन भारत और दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों के दिलोदिमाग़ में एक रोचक याद के रूप में दर्ज़ है।
भारतीय क्रिकेट में जून 25 इस लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है कि इसके बाद काफ़ी कुछ बदल गया और भारतीय क्रिकेट ने एक बड़ी छलांग लगायी, एक भरोसे की छलांग, एक जीत के जज़्बे की छलांग। तो आइये देखते हैं कि कैसे ये जीत केवल एक टूर्नामेंट की जीत नहीं थी और कैसे इसने भारतीय क्रिकेट को बदल कर रख दिया।
क्रिकेट में जून 25: महत्वपूर्ण क्षण
भारतीय क्रिकेट ने इससे पहले भी स्टार खिलाड़ी देखे थे और काफ़ी सारे। विजय मर्चेंट, लाला अमरनाथ, सुनील गावस्कर और स्पिन क्वार्टेट नाम से प्रसिद्ध वेंकटराघवन (जो बाद में अंपायर भी बने), इरापल्ली प्रसन्ना, बिशन सिंह बेदी और भागवत चंद्रशेखर कोई अनजान नहीं थे भारतीय खेल प्रेमियों के लिए। इन खिलाड़ियों ने ना केवल कुछ बेहतरीन व्यक्तिगत प्रदर्शन किये पर भारतीय क्रिकेट के पोस्टर बॉय भी बने।
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पर उस दौरान कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं आयी भारतीय क्रिकेट के लिए, वेस्टइंडीज़ में 1971 की सीरीज़ जीत को अगर भूल जाएँ तो। फ़िर देखा देश और दुनिया ने कपिल देव के विश्व कप उठाने की तस्वीर जिसने ना केवल भारत को गर्व करने का मौका दिया पर एक ऐसी प्रेरणा दी जिसने भारत को क्रिकेट में आगे बढ़ाया। इसने आने वाली पीढ़ी को क्रिकेट से जोड़ा और अब भारत का बच्चा बच्चा क्रिकेट खेलना चाहता था, विश्व कप जीतना चाहता था। भारतीय क्रिकेट में जून 25 ने ये बदलाव लाया था।
आत्मविश्वास लायी ये जीत
क्रिकेट में जून 25, 1983 के दिन के पहले भारतीय टीम को वनडे क्रिकेट के लिहाज़ से अच्छी टीम नहीं माना जाता था। भारतीय टीम के फ़ाइनल तक के सफ़र को विश्व मीडिया ने तुक्के की जीत कहा था पर विश्व कप के प्रबल दावेदार वेस्टइंडीज़ को हरा कर छा गए भारतीय क्रिकेटर। क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम को अपराजेय माना जाता था और भारत ने एक असंभव सी जीत पायी थी।
इस जीत ने भारत और भारतीय क्रिकेटरों में साहस और आत्मविश्वास का संचार किया, एक ऐसा विश्वास पैदा किया कि वो विश्व की किसी भी टीम को हरा सकते थे। दो साल बाद भारत की विश्व चैंपियनशिप की जीत, क्रिकेट में जून 25 की जीत के भरोसे से ही आयी थी। ये जीत आयी थी ऑस्ट्रेलिया में, जहाँ भारतीय टीम इससे पहले ज्यादा कुछ नहीं कर सकी थी। अब वो विश्व विजेता जो थे, अंडरडॉग का टैग दूर हो चुका था अब।
भारतीय क्रिकेट में जून 25 लाया बदलाव
अस्सी के दशक के शुरुआत तक भारतीय टीम में क्रिकेटर ज्यादातर बम्बई, दिल्ली और मद्रास जैसे बड़े शहरों से आते थे, क्रिकेट तब बड़े शहरों तक ही सीमित था जैसे। इन बड़े शहरों में क्लब संस्कृति थी जहाँ से जूनियर क्रिकेटर आते थे और ऐसे क्रिकेटरों को ढूंढना भी सेलेक्टरों के लिए आसान था। 1983 विश्व कप की जीत ने क्रिकेट को देश के दूर दराज़ तक पहुंचा दिया था और इसके लिए जिम्मेदार थे कपिल देव जो ऐसे ही छोटे शहर से आते थे। हरियाणा हरिकेन नाम से प्रसिद्ध हुए कपिल देव तब। उसके बाद छोटे शहरों से काफ़ी सारे क्रिकेटर आये भारतीय टीम में।
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और खेल बना धर्म भारत में
भारतीय क्रिकेट में जून 25 की इस महाजीत के पहले क्रिकेट की लोकप्रियता शहरों तक ही थी। पर विश्व कप जीत ने खेल की लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले भारत में। हॉकी, जो 1980 का ओलिंपिक गोल्ड मेडल लाया था, तब भारत का सबसे लोकप्रिय खेल था। और इस जीत ने सबको क्रिकेट से जोड़ दिया और सब क्रिकेट की ही बात करने लगे उसके बाद।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड को बनाया मजबूत
तब भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड इतना धनी और प्रभावशाली नहीं था। भारतीय क्रिकेट में जून 25 के उस जीत ने खेल को बहुत बढ़ाया भारत में, पागलपन तक ले गयी ये जीत खेल के प्रति प्रेम को। क्रिकेट लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ने लगी और स्टेडियम में एक एक सीट भर जाने लगे। स्टेडियम के बाहर लम्बी लम्बी लाइनें लगने लगीं। और भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आमदनी भी इसी हिसाब से बढ़ी।
बदला भारत में क्रिकेट खेलने का अंदाज़
भारतीय टीम इससे पहले ज्यादातर टेस्ट मैच खेलती थी और खेल का अंदाज़ भी रक्षात्मक होता था भारतीय बल्लेबाज़ों का। इंतज़ार और गेंद को जाने देना एक महत्वपूर्ण स्किल थे उस दौर में। सुनील गावस्कर भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े हीरो थे और उनके स्टाइल को बैटिंग का एकमात्र स्टाइल माना जाता था, उससे सीखा जाता था।
कपिल देव, कृष्णामचारी श्रीकांत और मोहिंदर अमरनाथ आ गए थे पर उनके खेल को उतनी मान्यता नहीं दी थी खेल प्रेमियों ने। पर भारतीय क्रिकेट में जून 25 ने एक नया दौर लाया। इसके बाद तीव्र गति से रन बनाने को और जोख़िम भरे खेल को भी जीत की गारंटी मिल गयी।
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श्रीकांत का बल्लेबाज़ी के उच्च क्रम में तीव्र गति से रन बनाना और कपिल देव के लम्बे छक्के अब खेल के रोमांच को बढाने लगे थे और भारतीय खेल प्रेमियों को पसंद आने लगे थे। बहुमुखी प्रतिभा वाले खिलाड़ी, जो ना केवल रन बना सकते थे पर विकेट भी ले सकते थे, अब खेल के अचूक अस्त्र बन गए थे और विश्व कप ने ऐसे रोज़र बिन्नी, मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ को क्रिकेट में स्थापित कर दिया था।
अब क्रिकेट में तेज़ गति से रन बनाने वाले खिलाड़ी और रन और विकेट दोनों में अपना योगदान देने वाला हरफ़नमौला खिलाड़ियों की खेप ने आना शुरू कर दिया था। भारतीय क्रिकेट में जून 25 ने वो दौर लाया था जिससे खेल प्रेमी अभी तक अनभिज्ञ थे और वो उन्हें बहुत पसंद आने वाला था।
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— SportsCrunch (@SportsCrunch) May 26, 2020